अवनि लेखरा ने पेरिस पैरालंपिक में कुल 249.7 अंकों के साथ स्वर्ण पदक पर कब्जा जमाया
अवनि लेखरा ने पेरिस पैरालंपिक में महिलाओं की 10 मीटर एयर राइफ़ल स्टैंडिंग एस1 स्पर्धा में एक बार फिर गोल्ड मेडल हासिल कर भारत को गर्वित किया है। अंतिम राउंड में वे कोरियाई शूटर युनरी ली से 0.8 अंक पीछे चल रही थीं, लेकिन अपने आखिरी शॉट में उन्होंने 10.5 का शानदार स्कोर करते हुए बाज़ी पलट दी। दूसरी ओर, युनरी ली का आखिरी शॉट मात्र 6.8 अंक का रहा, जिससे अवनि ने कुल 249.7 अंकों के साथ स्वर्ण पदक पर कब्जा जमाया, जबकि युनरी ली 246.8 अंकों के साथ दूसरे स्थान पर रहीं।
यह अवनि का लगातार दूसरा ओलंपिक है, जिसमें उन्होंने इस इवेंट में गोल्ड मेडल जीता है। इससे पहले उन्होंने टोक्यो पैरालंपिक में भी इसी स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता था, और वे पैरालंपिक खेलों में गोल्ड मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला एथलीट बनी थीं। पेरिस में अपनी इस कामयाबी को दोहराकर उन्होंने एक बार फिर इतिहास रच दिया है।
अवनि लेखरा संघर्षों की प्रेरक कहानी
अवनि का सफर संघर्षों और जीत की प्रेरक कहानी से भरा हुआ है। जयपुर की रहने वाली अवनि ने कानून की पढ़ाई की है, लेकिन 2012 में एक कार दुर्घटना के बाद से उन्हें स्पाइनल कॉर्ड की गंभीर समस्या का सामना करना पड़ा। इसके बाद वे व्हीलचेयर पर निर्भर हो गईं, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी और शूटिंग में अपनी क़िस्मत आजमाई।
2015 में जयपुर में ही उन्होंने शूटिंग से जुड़ाव महसूस किया और जगतपुरा स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में प्रैक्टिस शुरू की। अवनि के पिता चाहते थे कि वे खेलों में रुचि लें, और अवनि ने शूटिंग और तीरंदाज़ी दोनों में हाथ आजमाया। शूटिंग में उन्हें ज़्यादा आकर्षण महसूस हुआ और अभिनव बिंद्रा की किताब से प्रेरणा पाकर वे आगे बढ़ती गईं।
जयपुर के शूटिंग रेंज पर विकलांग खिलाड़ियों के लिए रैंप तक नहीं था, जिसे उन्होंने खुद लगवाया। प्रारंभ में, उन्हें और उनके परिवार को यह भी नहीं पता था कि पैरा शूटर्स के लिए विशेष उपकरण कैसे और कहाँ से मिलेंगे। लेकिन अवनि ने व्हीलचेयर की सीमाओं को अपने सपनों की उड़ान में बाधक नहीं बनने दिया।
2020 में कोरोना महामारी के दौरान उनकी शूटिंग ट्रेनिंग और फिजियोथेरेपी के रूटीन पर भी असर पड़ा। उन्होंने बिना गोलियों की प्रैक्टिस शुरू की और कठिन परिस्थितियों के बावजूद, पहले टोक्यो और फिर पेरिस ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया।
अवनि ने एक बार बीबीसी से बातचीत में कहा था, “विकलांग खिलाड़ियों को सहानुभूति की ज़रूरत नहीं है। लोग समझते हैं कि व्हीलचेयर पर बैठकर खेलना आसान होता है, लेकिन हम भी सामान्य खिलाड़ियों की तरह ही कठिन मेहनत करते हैं और हमें भी समान अवसर मिलना चाहिए।”
उनकी इस सोच और संघर्ष ने उन्हें पेरिस पैरालंपिक में भी सफलता की ऊंचाइयों तक पहुँचाया है।